हे महादेव!
हे महादेव, शंकर , प्रलयंकर,जुनि देखूँ जग केँ संहारक।
अछि व्यथा सृष्टि के पालक,दृश्य समूचा हृदय विदारक ।
देखूंँ पसरल अछि हाथ काल केँ,जे रूप कोरोना केँ धेलक।
छल हर्षित जे गाम हमर , शमशान बना ओकरा देलक।
दैबक ई दंड कहूँ कोना ? डरल निर्बल मानुष सहत!
ताकूँ उपाय भ देरी रहल,एक अँहीं कृपा सँ सृष्टि बचत।
आऊँ बचाबू अहि जग केँ ,जे अछि विपति काल केँ मारल।
देखूं सगरे अछि नोर झोर, आ दूत मृत्यु के पैर पसारल।
हे महादेव ,शंकर , प्रलयंकर, जुनि देखूँ जग केँ संहारक।
अछि व्यथा सृष्टि केँ पालक, दृश्य समूचा हृदय विदारक ।
दीपक झा रुद्रा