हे प्रभु ( प्रार्थना)
मम नाथ करिय सनाथ सिर पर हाथ प्रभु धर दीजिये
भगवान दीजै ग्यान मम अभिमान प्रभु हर लीजिये
हे विष्णु करुणासिंधु अब मोहि दास आपन कीजिये
जेहि जोनि जन्मउँ नाम जपउँ तुमार यह वर दीजिये
मोहि क्रोध मत्सर मोह लोभ कपट कुचाल न पा सकें
अरु दंभ ईर्षा पाप की लपटें मुझे न जला सकें
अब कृपा पात्र बना मुझे निज शरण में धर लीजिये
मम हृदय की कुटिया में अपना वास प्रभु कर लीजिये
़़़़़़ अशोक मिश्र