हे पथिक तुझको है चलना
हे पथिक तुझको है चलना
रुक न पाएं ये कदम।
जीतना है इस जगत को
जो बढ़े तेरे कदम।।
राह में बाधा बहुत हैं
सोचकर घबराना मत।
चल पड़ा है तू जो घर से
लौट वापिस आना मत।।
धैर्य की होगी परीक्षा
पास होना है तुझे।
चाह की होगी समीक्षा
पास होना है तुझे।।
शूल राहों को जो रोकें
फूल मन से मान ले।
बस सफलता है जहाँ पर
इक परीक्षा जान ले।।
है निडर निर्भीक भी तूँ
मन में डर तेरे नहीं।
चल पड़ा जग जीतने
हारना तुझको नही।।
चाह को अपनी बना ले
तीर उर तलवार तूँ।
अब विचारों में समाले
वीर है यलगार तूँ।।
छोटी सी चिंगारी बनकर
अब तिमिर को चीर दे।
शारदे का तूँ पुजारी
कंठ में माँ शीर दे।
ले विजय का हार मंजिल
कब से खड़ी है राहों में।
तू सिकंदर है जहां का
शोहरत तेरी बाँहों में।।
वीर वन संधान कर ले
लक्ष्य बस ही इक तेरा।
तब सफ़लता क़दमों होगी
‘कल्प’ साथी इक तेरा।