हे जन जन के राम, प्रकटो मेरे मन में
हे जन जन के राम
प्रकटो मेरे भी मन में
क्यों सूना मेरा मन मंदिर
जब आप विराजे कण-कण में
आज धरा आतंकित है
मानवता घबराई
मार रहा है काफिर कहकर
आ जाओ रघुराई
धर्म के नाम पर आज अधर्मी
करते हैं अगुवाई
सिमट गए हैं प्रेम शांति
हिंसा ने पर फैलाए
सता रहा आतंक का रावण
यह धरती कौन बचाए
हे नाथ प्रकट हो मारो रावण
जन-जन आस लगाए
हे जन जन के राम
प्रकट हो मेरे मन में
क्यों सूं ना मेरा मन मंदिर
जब आप विराजे कण-कण मैं