हे केशव नव अवतार धरो
हे केशव नव अवतार धरो
घात लगाए बैठे दानव
मानवता क्यों भूल गए?
रक्त रंजित धरा पर हँसते
देकर हमको शूल गए।
संबंध भुला शकुनी मामा
पापी दुर्योधन दाँव चले।
बली चढ़ी अपनों की छल से
बेघर पांडव छाँव तले।
देख पूत को धाराशाई
कुंती भी संत्रस्त हुई।
भीगा आँचल फूटी ममता
रोने को अभिशप्त हुई।
सुकमा तकते धृतराष्ट्र मौन
संचालन ये है कैसा?
नरभक्षी के आगे नत क्यों
कायरपन ये है कैसा?
किससे जाकर कहे वेदना
कलयुगी नरसंहार की?
हे केशव ! नव अवतार धरो
पीड़ा हरो संसार की।
स्वरचित/मौलिक
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)
मैं डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना” यह प्रमाणित करती हूँ कि” हे केशव नव अवतार धरो” कविता मेरा स्वरचित मौलिक सृजन है। इसके लिए मैं हर तरह से प्रतिबद्ध हूँ।