हे आदिशक्ति, हे देव माता, तुम्हीं से जग है जगत तुम्ही हो।।
हे आदि शक्ति, हे देव माता,
तुम्हीं से जग है जगत तुम्ही हो।
तुम्ही हो दुर्गा तुम्ही हो काली,
सरस्वती मां, हो तुम निराली।
तुम्हारी कृपा का दान पाकर,सकल चराचर है ज्ञान पाता।
बस मेरे जीवन का तम भी हर लो,दो ज्ञान रूपी प्रकाश को मां।।
हे नारी शक्ति हे देव माता,
सकल चराचर को पालती तुम।
कभी हो माता, बहन कभी हो,
कभी हो भार्या बधु कभी हो।
हो इन सभी रूपों में तुम्ही बस,नजरिया सबका अलग अलग है।
हो पूजते बेटी को तुम्ही तो, प्रताड़ना देते क्यों वधु को?
हे देवी रामायण में तुम्हीं हो,
तुम्हीं से तुलसी की हैं विधाएं।
है काव्य मीरा का, कि तुम्ही हो,
विरह में राधा के बस तुम्ही हो।
कि देवी तुमसे है सार जग का,जगत भी सारा है बस तुम्ही से।
हे देवी शक्ति हे नारी शक्ति, नमन है तुमको कि तुम यहीं हो।।
तुम्ही में सीता, तुम्ही में राधा,
तुम्ही में रुकमणी को देखता मां।
हैं रूप तीनों, चरित्र तीनों,
पर एक तुम में सब देखता मां।
संभाला सबको है बस तुम्ही ने, पर मां हमीं से संभल सकी ना।
हे माता जीवन है बोझ लगता, कि जिसका था न दिया उसी को।।
हे नारी शक्ति हे देव माता, नमन है तुमको की तुम यहीं हो।।
हे आदि शक्ति हे देव माता, तुम्ही से जग है जगत तुम्ही हो।।
लेखक/कवि
अभिषेक सोनी “अभिमुख”
(ललितपर, उत्तर–प्रदेश)