हुस्न है नूर तेरा चश्म ए सहर लगता है। साफ शफ्फाफ बदन छूने से भी डर लगता है।
हुस्न है नूर तेरा चश्म ए सहर लगता है।
साफ शफ्फाफ बदन छूने से भी डर लगता है।
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रात को नींद नहीं ले आती न सुकूं दिन को।
मेरे ऊपर,तेरी चाहत का असर लगता है।
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तुझको हंसता हुआ देखूं तो सुकूं मिलता है।
मेरी दुआओं का यह उम्दा समर लगता है।
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मंजिलें और मुसाफ़त नहीं माने रखते।
हमसफर साथ हो, आसान सफर लगता है।
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कहकशां सारी तेरे ताब से ही रोशन है।
मेरा महबूब मुझे शमशो कमर लगता है।
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इस तरह ख़्वाबों ख्यालों में मेरे रहती है।
यह मेरा दिल नहीं, अब उसका ही घर लगता है।
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रूठ जाती है “सगी़र” उसके बड़े नखरे हैं।
इश्क है उस से मगर कहने से डर लगता है।