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4 Jan 2017 · 1 min read

हुजूर बोलिये जरा

को’ई नगर जले न अब, हुजूर रोकिये जरा
रहोगे’ मौन कब तलक, हुजूर बोलिये जरा

बहक रहे हैं’ क्यूँ युवा, दवाब है वो’ कौनसा
सुलग रही है’ आग क्यूँ, हुजूर सोचिये जरा

समाज को न बाँटिये न जाति में न धर्म में
रखा न तोड़ने में’ कुछ हुजूर जोड़िये जरा

सजाइये न महफ़िलें, यहाँ पे रोज शाम को
कभी किसी के अश्रु भी, हुजूर पौंछिये जरा

चलाइये न हाथ मारिये न लात पेट पर
कभी गरीब की दुआ हुजूर लीजिये जरा

न नफरतें बढ़ाइये, गरीब में अमीर में
कभी तो’ बीज प्रेम के, हुजूर बोइये जरा

1 Comment · 256 Views
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