हीरे का जन्म और मजदूर की कहानी
हजारों बरस लगे वसुंधरा के गर्भ में
चमक और आकार लेने में
फिर बरसो पड़ा रहा धरा की गहराई में
किसी की खुदाई के इंतजार में
चमकती हुई आंखें मूंदे गुमनामी के अंधेरों में
एक दिन वसुंधरा के सीने पर
मजदूर की कुदाल चल गई
सीना चीर दिया, मेरी आंख खुल गई
मेरे जन्म के साथ ही मजदूर की भी किस्मत बदल गई
मैं चमकीला पत्थर किस्तम मेरी संवर गई
अपने वजन और शुद्धता अनुसार नीलाम हो गया
जोहरी मेरा मोल समझ गया
तराश कर करीने से कीमती आभूषणों में जड़ दिया
मुझे कीमती रत्नों में शामिल कर दिया
अब लोग मेरी सुरक्षा करते हैं
मैं आभूषणों पर जड़ा इतराता हूं
मोलभाव के गणित में कई बार बिक जाता हूं
और वह मजदूर जिसने मुझे निकाला था बाहर
बोखला गया ढेर सारा धन पाकर
भौतिक सुख-सुविधाओं में सब उड़ा दिया
धन मिलते ही बौरा गया दिल सुरासुंदरी पर आ गया
कुछ ही दिनों में फिर कंगाली पर आ गया
फिर से मेरी तलाश में कुदाल लेकर आ गया
मैं सजता रहता हूं जूड़ामणि राजमुकटों में
कर्णफूल गले का हार कोहिनूर की तरह
बदलता रहता हूं सिंहासन गले बदल बदल कर
देश और दुनिया में बिकता रहता हूं
समय की कीमत अनुसार
सुरेश कुमार चतुर्वेदी