*हीरा बन चमकते रहे*
हीरा बन चमकते रहे
वे जहर पे जहर घोलते रहे,
और हम आगे ही आगे बढ़ते रहे ।
वे चुनौतियों पर चुनौतियां देते रहे,
और हम चुनौतियों पे,
चुनौतियां लेते रहे।
वे जल-जलकर राख होते रहे,
वे जल-जल का राख होते रहे,
और हम घिस-घिसकर,
हीरा बन चमकते रहे।
और हम घिस-घिसकर,
हीरा बन चमकते रहे।
वे यू तेल गर्म करते रह गए,
और हम फोरन बन,
स्वादिष्ट बनते रहे।
वे गिराना चाहे कीचड़ में,
और हम कमल बन खिलते रहे।
वे अरमानों के पंख काटने लगे,
और हम हौसलों के,
पंख लिए उड़ते रहे।
राहों में मंजिल की बने रुकावटें,
और हम राह बदल,
मंजिल पर जा बैठे।
सदा हीरा बन चमकते रहे।
सदा आगे ही आगे बढ़ते रहे।
रचनाकार
कृष्णा मानसी
(मंजू लता मेरसा)
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)