हिम्मत और मेहनत
खोजता क्या है ?
अपने हाथों की लकीरों में मुक़द्दर !
वो तो बदलेगा जब होगी तुझमें जुऩूने मश़क्कत !
वक्त से पहले कुछ भी मय़स्सर नहीं होता !
ग़र लाख कोशिश करें इंसां बिन मेहनत ,
नस़ीब नहीं जागता !
मत कर तलाश तू मसीहा इस इंसानी भीड़ में !
मसीहा तो बसता है तेरे ज़मीर में !
जगा कर देख ज़रा पायेगा तू उसे क़रीब
अपने ही दिल में !
स्य़ाह ग़मगीन रातों के बाद ख़ुश़नुमा
चाँदनी रातें आएगी !
ख़िज़ां के गम़ज़दा म़ाहौल के बाद
मस़ऱर्त की फ़िज़ा लिए बहार आएगी !
सब्र की लग़ाम थाम कर तू आगे बढ़ता चल
रख बुलंद अपने हौस़ले ।
तय कर पाएगा तभी तू हर फासले।
हालातों के भँवर और ज़ुल्म- औ़- अल़म से
जूझने की तेरी ये हिम्मत ।
ले जाएगी तुझे वहां जहां होगी तमाम खुशियां और रूहानी सुकूँ की नैम़त।