हिमालय की छटा
ये हिमालय की छटा है,शीश पर हिम की जटा है।
ऊँचा खड़ा हिमालय आकाश चूमता है।
फूलों की वादियो में,ख़ुशबू को सूँघता है।
कल-कल निनाद के स्वर से,गीत गूँजता है।
शीतल हवाएं देकर ,के हाल पूछता है।
कहीं जग का हो न जाए हाल लटा है।।1।
ये हिमालय की छटा है,शीश पर हिम की जटा है।
वनों की खूब बहार वहाँ है।
क़ीमती वृक्षों की बाढ़ वहाँ है।
लम्बे-लम्बे चीड़ देवदार वहाँ है।
सेब और मेवो की बाग वहाँ है।
औषधियों से खूब पर्वतराज पटा है।।2।
ये हिमालय की छटा है,शीश पर हिम की जटा है।
देवी देवताओं का वास वहाँ है।
दुनिया में भारत का ख़ास वहाँ है।
भक्तों का रहता उल्लास वहाँ है।
भोले का वसता कैलास वहाँ है।
हरिद्वार,बद्रीनाथ और केदारनाथ सटा है।।3।।
ये हिमालय की छटा है,शीश पर हिम की जटा है।
गंगा,यमुना की आती है धारा वहाँ से।
बम भोले का लगता है नारा वहाँ से।
ठंडी हवाओं से बचता है देश हमारा वहाँसे।
उपजाऊ भूमि बनाने आयी जलधारा वहाँ से।
कभी-कभी वहाँ पर बादल फटा है।।4।
ये हिमालय की छटा है,शीश पर हिम की जटा है।
जब हिमालय से आयी है गंगा की धारा।
भागीरथ के साठ हज़ार पुरखों को तारा।
साल भर लगता है जय गंगे का नारा।
पूरे उत्तर भारत के लोगों को उबारा।
फसलों का यहाँ पर अम्बार बटा(लगा) है।।5।।
ये हिमालय की छटा है,शीश पर हिम की जटा है।