हिन्द की फिजा में जहर घोल रहे हैं
हिन्द की फिज़ा मे जहर घोल रहे हैं
हम खुद जबां दुश्मन की बोल रहे हैं
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बेठे हैं जो हम सारे हिन्द की पनाह मे
कियूं रास्ते हम दुश्मनो के खोल रहे हैं
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किस्से मे भी तेरे नही कोई माँ भारती
इक दूसरे की खामियां खखोल रहे हैं
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कहीं खा रहा सरहदों पे गोलियां कोई
कहीं बेच के जमीर नमक तोल रहे हैं
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जब इक हमारी राह कियूं ढूंढते अलग
अलग अलग वजूद कियूं टटोल रहे हैं
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कपिल कुमार
17/11/2016