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8 Jun 2017 · 1 min read

हिन्दुस्तान लेकर निकला हूँ

छोटे शहर से मैं बड़े अरमान ले कर निकला हूँ

मैं खुद अपनी मौत का सामान लेकर निकला हूँ

मेरे वतन की वफादारी पर ऐ ऊँगली उठाने वालो

मैं अपने गोसे गोसे में हिंदुस्तान लेकर निकला हूँ

भटकी हुयी कॉम ये मोहम्मद की रह पर आ जाये

इसीलिए नबीऐ पाक का फरमान लेकर निकला हूँ

ऐ काफिर तू हमें इतना भी कमज़ोर मत समझ लेना

मैं घर से बूढी बुढ़िया का ईमान लेकर निकला हूँ

ऐ भाई मैं किसी जालीम के आगे सर न झुकाउंगा

मैं वालिद की गरीबी वाली शान लेकर निकला हूँ

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