हिन्दी हिन्दुस्तानी
बन जाए हिन्दी राष्ट्र और जन -जन भाषा ।
दयानंद, सावरकर, तिलक की यही आशा ।।
सदा से हमारे राष्ट्र नायकों ने किया प्रयास ।
हिन्दी हिन्दुस्तानी है तब जगी यह अभिलाष ।।
एक छोर से दूसरे छोर तलक बोली जाए ।
गीत प्रेम के मधुर इसमें ही हर जन है गाए ।।
समुदाय, प्रान्त ,जातियों में जगाए भाईचारा ।
बिना जिसके लगता हो तन मन यह हारा ।।
संस्कृत सब भाषाओं की जननी कहलाती ।
जिससे निकल भाषा बोली पंख फैलाती ।।
देखो हिन्दी की हरियाली दूर दूर लहराए ।
ज्यों पैर में पायल पहन चंचल बाला इतराए ।।
हिन्दी हो आसीन यह लीग को स्वीकार नहीं ।
पर हमको भी पसंद उर्दू का व्यवहार नहीं ।।
न मुस्लिम रूठे न हिन्दू भाषा दोनों का मेल ।
सत्तारूढ़ कांग्रेस ने रचा था ऐसा तब खेल ।।
हिन्दी उर्दू के सम्मिश्रण वाली हो ऐसी भाषा ।
वतन को बांध रखे ऐसी करते है अभिलाषा ।।
सुशोभित की गई नागरी उर्दू लिपि लेखनी ।
आज जन जन की भाषा हिंदी हिन्दुस्तानी