हिन्दी – माँ भारती का अभिमान है
सहज-सरल पर बड़ी अनोखी हिन्दी ऐसी भाषा है
जनगण की प्रत्याशा है यह, भारतवर्ष की आशा है।
कभी ‘निराला’ के शब्दों में कभी ‘धूमिल’ की क्रांति में
लहर उठती हैं यूँ हिन्दी की, ज्वलंत कोई अभिलाषा है।
सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है
भारत को ‘दिनकर’ की दहाड़ हिन्दी ही सुनाती है।
‘कामायनी’ का सम्मोहन, ‘ध्रुवस्वामिनी’ का जादू
उपलब्धियाँ यह लेखन की, हिन्दी ही बताती हैं।
हिन्दी जोड़के रखती है इतिहास से इंसान को
कौन भुला पाएगा कभी, ‘मुंशी’ जी की ‘गोदान’ को।
‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता में कितने भाव है
‘महादेवी’ की छायावाद भी, हिन्दी का निर्माण है।
‘मधुशाला’ से प्रेम की सीखें हिन्दी ही तो सिखाती हैं
मानवता निर्माण का पाठ, ‘चिदंबरा’ सुनाती है।
‘झाँसी की रानी’ हिन्दी भाषा की एक हुँकार है
भेदभाव के कुशासन को, अपनी हिन्दी मिटाती हैं।
हिन्दी की डुबकी से ही , प्राप्त होता वो ज्ञान है
अपनी बोली बोलना ही ,भारत का सम्मान हैं।
‘टैगोर’ कहते थे सारी भाषाएँ, स्वयं में रानी हैं
किंतु हिन्दी भाषा, माँ भारती का अभिमान हैं।
जॉनी अहमद ‘क़ैस’