हिन्दी दिवस
हिन्दी दिवस
(हिन्दी दिवस पर विशेष)
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अंग्रेजी संग गलबहियाँ ,
अधर करे ठिठोली बस।
करते दिन भर मम्मी डैडी ,
मनाते बस हिन्दी दिवस।
भूल गये भारतेंदु युग को ,
हिन्दी का वो ऋतु पावस।
बरसती सत्य की धारा थी,
देवता भी हो जाते बेबस।
आज़ादी मिली जो हमको ,
भूप के लिए हिंदी अपरस।
तन में जो गुलाम लहू था ,
जुटाया न हिंदी का साहस।
हिन्दी अब मृतप्राय हो गयी ,
देख लो सीबीएसई सिलेबस।
खाते हैं हम हिन्दी की कसमें ,
पर हम हो गए कितने बेबस।
माना कि हर प्रांत अलग है ,
पृथक हर जन की भाषा है।
पर सबकी एक राष्ट्रभाषा हो ,
इस पर क्यों होती है बहस ?
अंग्रेजी संग गलबहियाँ ,
अधर करे ठिठोली बस..!
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १०/०१/२०२३
माघ ,कृष्ण पक्ष,तृतीया ,मंगलवार
विक्रम संवत २०७९
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