* हिन्दी को ही *
** गीतिका **
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हिन्दी को ही गले लगाएं, नित यह ध्यान धरें हम।
अंग्रेजी का भूत भगाएं, यह शुभ कर्म करें हम।
आजाद देश प्रिय भारत की, महिमा का पार नहीं।
इसी हेतु भारत मां के मिल, सारे कष्ट हरें हम।
देश की सभी भाषाओं का, कोई मोल नहीं है।
इनके खातिर अपने मन में, पावन भाव भरें हम।
संस्कृत है भाषा महान अति, इसकी सब धाराएं।
संस्कृति को पहचाने इनसे, प्रभु को नित्य स्मरें हम।
विश्व हमारी ओर देखता, आशा भरी नजर से।
भय दुविधा की बातें छोड़ें, बिल्कुल नहीं डरें हम।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १८/०२/२०२४