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31 Jan 2024 · 1 min read

हिज्र में रात – दिन हम तड़पते रहे

हिज्र में रात – दिन हम तड़पते रहे
ख्वाब पतझड़ के जैसे बिखरते रहे
ज़िंदगी में न सावन की आई बहार
नैन ही बादलों से बरसते रहे
डॉ अर्चना गुप्ता
31.01.2024

1 Like · 94 Views
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