हिंदुस्तान
चाहे भारत कहो या इंडिया, चाहे तो हिन्दुस्तान कहो
मातृभूमि है ये हमारी, इसे दिल, ज़िगर चाहे जान कहो
सोने की चिड़ीया था ये, स्वर्णिम इसकी कहानी है
चंद्रगुप्त, सम्राट अशोक का, कहाँ हुआ कोई सानी है
पृथ्वीराज चौहान सरीखे, वीर यहीं पे जन्में हैं
गौतम बुद्ध के वंशज हम, नानक कबीर भी हममें हैं
मरकर भी वो मरे नहीं, जो देश की ख़ातिर मरते हैं
सदा जिये जो स्वार्थ में अपने, उनको तुम बेज़ान कहो
जब भारत माँ की छाती पर,जुल्मो-सितम थे, हमले थे
हम ही थे जो गांधी बनकर, घरों से अपने निकले थे
भगत सिंह,आज़ाद बने, और लक्ष्मी की तलवार बने
गुलामी की जंज़ीरों पर थे, जो वज्र सा प्रहार बने
मौत को गले लगाकर भी, थे हँसते- हँसते कह गए
इन विदेशी गोरों को अब,तुम पल भर का महमान कहो
क्यूँ भूल गए वो लाठियां, बनकर के मौत जो आई थी
क्यूँ भूल गए वो गोलियाँ, जो सीने पे हमने खाई थी
क्या याद नहीं वो फंदा जिसपे, कितनी जवानी झूल गयी
आज़ादी को दुल्हन कहना , ये नस्ल भला क्यूँ भूल गयी
जात-पात और भाषा-धरम के, झगड़े में ना उलझो तुम
बात करो बस देशप्रेम की, चाहे कोइ भी ज़बान कहो
सुरेखा कादियान ‘सृजना’