हिंदी
निज रुधिर में हिंदी बसी,उर भाव देता ध्यान का।
कुछ भी कहो,हम ना सहेंगे,बोझ अब अज्ञान का।
संस्कृति हमारी विश्व को करती सु चेतन, दीप्ति है।
प्रगतिमय सद्कोश भारत,मानव सुगति विज्ञान का।
पं बृजेश कुमार नायक
निज रुधिर में हिंदी बसी,उर भाव देता ध्यान का।
कुछ भी कहो,हम ना सहेंगे,बोझ अब अज्ञान का।
संस्कृति हमारी विश्व को करती सु चेतन, दीप्ति है।
प्रगतिमय सद्कोश भारत,मानव सुगति विज्ञान का।
पं बृजेश कुमार नायक