हिंदी है हम, हिंदी बोलेंगे
हिंदी है हम, हिंदी बोलेंगे।।
अधीर होकर आज हम लब्ज खोलेंगे ।
उदगम, जननी हिंद साहित्य अपनी
जो बोल बसे मन में, वो ही पोल खोलेंगे।
अब इस दिवस पर ही क्यों
हर दफा ही बोलेंगे ।
भाष्य रत्न ये पुरातन्
हर मन को कोड़ेगे।
परिवेश ये सनातन्
हर हृदय को जोड़ेगे।
उदगम, जननी हिंद साहित्य अपनी
जो बोल बसे मन में, वो ही पोल खोलेंगे।
आडंबर में है ही क्यों
शाश्वत पहचान यह ।
हिंद राष्ट्र की गाथा
विश्वगुरु का मान यह।
हिंद धरा का धरोहर
योग का सौपान यह।
यही भाष्य की परिभाषी,
अनवरत ज्ञान का बखान यह।
चिर शोध की व्याख्या
पौराणिक वेद, पुराण यह।
उदगम, जननी हिंद साहित्य अपनी
हिंद की परिधान् यह।
है, संमुख अपने साहित्य स्वर का द्वार खुला
वर्षो की आत्म साधना, जो साधे वो मन खिला
हिंद साहित्य की बोली, कोई जन कहाँ भुला
चुप होकर फिर मन यही बोला यही बोला
उदगम, जननी हिंद साहित्य अपनी
प्रथम नवजीवन के कंठ में ही पड़ा।
विक्रम कुमार सोनी के कलम से।।।
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।।