हिंदी दिवस
मैं आप सब की मातृभाषा हूँ
क्या तुम्हें नही लगता मैं ख़तरे में हूँ
मैं हूं तुम्हारी हिंदी तुम्हारे वतन की पहचान
वतन की सौगंध हैं तुमको बचा लो मुझे
मैं ही तो भारत माँ की आन बान शान बचाओ मुझे
राष्ट्रभाषा हूं मैं मुझसे ही पहचान हैं तुम्हारी।
परम्परा भी अभिलाषा भी हूं मैं तुम्हारी
मेरा घर भारत हैं यहाँ तो लाज बचाओ मेरी
घर मंदिर हैं मेरे लिए बचा लो मुझे सौगंध मेरी
देखो पाश्चात्य की भीड़ में कहां खो गई अस्मिता मेरी
राष्ट्रभाषा हूं मैं मुझसे ही पहचान हैं तुम्हारी।
इतनी गहरी निंद्रा भी मत देना मुझे कि तंद्रा आ न पाए
युवा पीढ़ी को सौप दो कमान मेरी लाज जाने न पाए
मैं ही गद्य भी बनी और पद्य भी तभी जान सभी पाए
दोहे,छंद मेरे प्राण उन्ही से भारत को जान पाए
राष्ट्रभाषा हूं मैं मुझसे ही पहचान हैं तुम्हारी।
क्या अपनी भाषा से नही हो सकती पहचान
क्यो अपनानी पड़ी आज पाश्चात्य की शान
मेरी तो हर मात्रा,बिंदु,हलंत,विसर्ग हिंदी की हैं शान
अंग्रेजी से भारी मेरी व्याकरण जो साहित्य की पहचान
राष्ट्रभाषा हूं मैं मुझसे ही पहचान हैं तुम्हारी।
मैं तो हूँ हिंदी अपने वतन की जान
क्यो नही बन सकती मुझे बोल कर शान
बनाओ तुम मुझ संग ही अपनी पहचान
कहो गर्व से हिंदी मेरी भाषा हैं महान मेरे देश की शान
राष्ट्रभाषा हूं मैं मुझसे ही पहचान हैं तुम्हारी।
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद