मैं अपना गाँव छोड़कर शहर आया हूँ
मैं अपना घर छोड़कर शहर आया हूँ,
ताजी हवा छोड़कर पैसा कमाने आया हूँ,
भीड़, बगैरत, दिखावा, प्रदूषण से घिर गया हूँ,
मैं अपनी सादगी गाँव छोड़कर आया हूँ.।
हर शख्श अनजान है यहाँ पर,
नादान भी शातिर है यहाँ पर,
यक़ीन करना खतरनाक है,
क्योंकि हर चेहरे पर नकाब है यहाँ पर.।
मशीन जैसा भाव है यहाँ पर,
प्रयोग करो और फैंकों का हाल है यहाँ पर,
इंसानियत तो केवल शोरूम तक सीमित है,
हैवानियत का गोदाम हर घर में है यहाँ पर.।
हर फूल प्रदूषण से बेरंग है,
हर पत्ता मिट्टी धूल से तंग है,
परेशान है हर कोई यहाँ पर,
मगर हर चेहरे पर दम्भ है यहाँ पर.।
मैं अपना प्रारब्ध पूरा करने शहर आया हूँ,
कुछ बुरे किए का फल भोगने शहर आया हूँ,
अब किसी आँचल में शांति मिलती नहीं मुझे,
क्योंकि मैं अपनी माँ गाँव छोड़कर आया हूँ..।।