*हिंदी गजल के क्षेत्र में रघुवीर शरण दिवाकर राही का योगदान*
हिंदी गजल के क्षेत्र में रघुवीर शरण दिवाकर राही का योगदान
—————————————-
हिंदी गजल के क्षेत्र में रघुवीर शरण दिवाकर राही का योगदान अतुलनीय है । हिंदी गजल को आपने हिंदी गजल के रूप में ही लिखा और हिंदी पाठकों के सामने प्रस्तुत किया । यह हिंदी गजलें इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं कि इनकी रचना में विशुद्ध हिंदी शब्दावली का प्रयोग कवि ने किया है । यह तो कहा जा सकता है कि कुछ हिंदी शब्द कठिन हो गए हैं, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि यह उर्दू अथवा अरबी-फारसी के शब्दों के प्रयोग का मिश्रण हैं या उर्दू गजलों को देवनागरी में लिख दिया गया है । गजल में जो प्रवाह आना चाहिए, वह इन गजलों में विद्यमान है ।
मेरे पास मुझे भेंट की गई रघुवीर शरण दिवाकर राही की पुस्तक काव्य संग्रह प्रज्ञादीप है । इस पर श्री दिवाकर जी के हस्ताक्षर अंकित हैं। “चिरंजीव रवि प्रकाश को सस्नेह भेंट” लिखा हुआ है । तिथि 10 मई 1998 अंकित है । दिलचस्प बात यह है कि पुस्तक में अन्यत्र कहीं भी यह पता नहीं चल रहा कि प्रकाशन का यह पहला संस्करण किस वर्ष अथवा किस तिथि को प्रकाशित हुआ है। 1942 में “बिखरे हुए फूल” हिंदी कविता संग्रह के प्रकाशित होने के बाद यह हिंदी काव्य सृजन की दिशा में कवि का पहला और संभवतः आखिरी प्रयास कहा जा सकता है ।
हिंदी गजल को हिंदी के शब्द ही समृद्ध करते हैं । वही उसका मुख्य आधार हैं । हिंदी गजल में उर्दू के प्रचलित शब्द प्रयोग में लाए जाने की मनाही नहीं रहती, लेकिन दिवाकर राही जी उन व्यक्तियों में से रहे हैं, जिनका हिंदी और उर्दू दोनों पर समान अधिकार रहा है । हिंदी में लेख और उर्दू में शायरी उनका क्षेत्र रहा है । ऐसे में हिंदी पर दिवाकर राही जी का असाधारण अधिकार उनकी गजल संरचना में बढ़-चढ़कर अपनी प्रस्तुति दे रहा है । यह हिंदी गजलें आमतौर पर पॉंच अथवा सात शेर अथवा युग्म की हैं। लेकिन अनेक गजलों में छह शेर या युग्म का प्रयोग हुआ है, जो परंपरागत गजलों की शेर संख्या से विपरीत है । इस तरह यह हिंदी गजल संग्रह परंपरागत उर्दू गजलों की शिल्पगत सीमाओं का भी अतिक्रमण कर रहा है।
विचारधारा के स्तर पर अगर बात की जाए तो प्रज्ञादीप की गजलें धर्म के आडंबर पर प्रहार करती हैं, मनुष्यता की भावना की स्थापना करती हैं, सब प्रकार से जातिभेद को अथवा मनुष्य और मनुष्य के बीच किसी भी विभेद को अमान्य कर देती हैं और एक वास्तविक रुप से मनुष्यता पर आधारित समाज के निर्माण का आह्वान करती हैं । यह हिंदी गजलें ऊंचे दर्जे के विचारों की ओर पाठकों को ले जाने में समर्थ हैं । सबसे बढ़कर इन गजलों में प्रचलित राजनीति से हटकर कुछ ऐसी खरी-खरी बातें कही गई हैं, जो श्री दिवाकर राही के अनुभवजन्य बोध की उपज कही जा सकती हैं ।
सुदीर्घ जीवन जीने वाले तथा सार्वजनिक घटनाक्रमों को बारीक और पैनी निगाहों से निरीक्षण करने की सामर्थ्य रखने वाले रघुवीर शरण दिवाकर राही वास्तव में एक महामानव थे। उन्होंने राष्ट्रीयत्व पर प्रहार करने वाली सभी प्रवृत्तियों पर अपनी हिंदी गजलों में आलोचनात्मक लेखनी चलाई है। देश को तुष्टीकरण के रास्ते पर चलने से होने वाले नुकसान के बारे में सचेत किया है । क्षुद्र राजनीति को राष्ट्रहित के लिए घातक बताया है तथा धर्म के वाह्य रूप में उलझने को सच्चे धर्म की प्राप्ति में एक राह का रोड़ा समझाया है । ऐसे क्रांतिकारी विचार धर्मतत्वों के आराधक किसी कवि के ही हो सकते हैं। एक ऐसा कवि जो धर्म के नाम पर अंधविश्वास, रूढ़िवादिता अथवा उन्मादवादिता के प्रवाह में बहना अस्वीकार कर देता है और निरंतर सजग नेत्रों से हर बात पर तर्क और व्यापक मानवीय तथा राष्ट्रीय हितों की दृष्टि से विचार करने को ही युक्तिसंगत मानता है।
प्रज्ञा दीप की हिंदी गजलें एक बिल्कुल नए तेवर के साथ हिंदी जगत को अनुपम उपहार है। कई दशक बीतने के बाद भी इनकी ताजगी और प्रासंगिकता कम नहीं हुई है बल्कि कहना चाहिए कि निरंतर बढ़ती जा रही है । प्रज्ञादीप में केवल हिंदी गजलें ही नहीं हैं। वास्तव में इस का शुभारंभ एक हिंदी गीत से हुआ है। इसमें कवि ने अपने दस दोहे भी प्रकाशित किए हैं । तात्पर्य यह है कि दिवाकर राही ने हिंदी काव्य के क्षेत्र में गजल, गीत और दोहों के माध्यम से जो योगदान दिया है,वह उनके जीवन के अंतिम वर्षों का एक बहुमूल्य पक्ष है । इसका मूल्यांकन कवि को हिंदी काव्य जगत में प्रमुख स्थान पर आसीन करता है । गजलों की लयात्मकता अत्यंत सहज है। विशुद्ध हिंदी शब्दों के प्रयोग के साथ भी गजलें लिखी जा सकती हैं, प्रज्ञादीप की हिंदी गजलें इस दृष्टि से सचमुच एक उदाहरण के तौर पर उद्धृत करने योग्य हैं।
आइए, कुछ अच्छे विचारों को प्रज्ञादीप की हिंदी गजलों के माध्यम से स्मरण किया जाए ! सहज रूप से व्यक्ति को जागरण के लिए उठने और जागने के लिए कवि सरलता से प्रेरणा प्रदान कर रहा है। :-
देखो कोयल कूक रही है, नाच रहे हैं मोर
सोने वालों बहुत सो चुके, उठो हो गई भोर
(गजल संख्या 18)
नीर क्षीर विवेक आवश्यक है। इस बात का प्रतिपादन करती हुई हिंदी गजल के एक शेर पर दृष्टि डालिए:-
नीर क्षीर विवेक से, गुण दोष के आधार पर
जो समस्या सामने आए, उसे हल कीजिए
(गजल संख्या 19)
कितनी सहजता से मृत्यु को कवि ने जीवन के एक सत्य के रूप में ग्रहण किया है । गजल का शेर देखिए :-
मिट्टी का मिट्टी में मिलना, कुछ अनहोनी बात नहीं
जीवन है तो मृत्यु नहीं क्यों, दिन है तो क्यों रात नहीं
(हिंदी गजल संख्या 21)
एक ग़ज़ल के दो शेर विशुद्ध हिंदी शब्दावली के साथ कथ्य की सुस्पष्टता का जैसा उद्घोष कर रहे हैं, वह अनुपम है:-
चाहे कुछ भी कहो, आज कोई न भ्रमित है
किस कारण से देश बॅंटा, यह सर्वविदित है
राजनीति का खेल देखकर बुद्धि चकित है
तुष्टीकरण हुआ जिस जिसका, वही कुपित है
(गजल संख्या 23)
रघुवीर शरण दिवाकर राही का लेखन जिस तरह सर्वथा शुद्ध मनुष्यतावाद पर आधारित चिंतन से प्रेरित रहा है, उसी विचार की छाप उनकी हिंदी गजलों पर भी है । एक गजल में कवि ने ने स्वयं अपनी इस लेखकीय विशेषता को इंगित कर दिया है, देखिए :-
मैं खुद चाहूॅं तो भी शायद, लिख न सकूंगा ए राही
वह निबंध या कविता जिस पर चिंतन की कुछ छाप नहीं
(गजल संख्या 32)
दोहों की संख्या कम है, लेकिन जो लिखे गए हैं वह सब मील के पत्थर की तरह अपनी काव्यात्मकता के कारण सदैव बहुमूल्य रहेंगे। एक दोहा देखिए:-
राजनीति के खेल में, नैतिकता की बात
जो करता है आजकल, वह खाता है मात
कुल मिलाकर परिमाण की दृष्टि से अथवा संख्या-बल की दृष्टि से कहें तो रघुवीर शरण दिवाकर राही का हिंदी काव्य बहुत अधिक नहीं है, लेकिन अपनी गुणवत्ता के कारण विशेष रूप से उनकी हिंदी गजलें सदैव स्मरण की जाती रहेंगी । हिंदी में ऐसा प्रवाह अन्यत्र आसानी से देखने में नहीं आएगा। रघुवीर शरण दिवाकर जी की स्मृति को शत-शत नमन
________________________
समीक्षक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451