‘हिंदी’
‘हिंदी’
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सब सुनो!’हिंदी’ की ‘कहानी’
सदा ये,’भाषा’ की ‘महारानी’
खुद में ग्यारह ‘स्वर’ है समेटे;
तैंतीस ‘व्यंजन’, यह है लपेटे;
शामिल,अंत:स्थ’ व ‘उष्ण’हैं;
‘वर्ण’, फिर क्ष,त्र,ज्ञ,श्र जानो;
चार है ये,इसे ‘मिश्रित’ मानो;
ढ़ और ड़, ‘द्विगुण’ दो इसके;
दो हैं, ‘विसर्ग’और ‘अनुस्वार’
सारे ‘अक्षर’ बनते हैं , हमेशा;
इन “बावन-वर्ण”के,अनुसार;
हर ‘वर्ण’ में है, आपसी प्यार;
यही अपनी हिंदी का,’संसार’;
लिपि इसकी,सदा ‘देवनागरी’
भाषा की जननी , संस्कृत से;
कुछ शब्द इसने, उधार लिये;
संस्कृत ही निज’संस्कार’दिये;
अंग्रेजी ही बनी,मार्ग में बाधा;
‘राजनीति’ में फसी है,ज्यादा;
फिर भी कहीं,मातृभाषा बने;
संविधान इसे ,राजभाषा चुने;
अब ये , इधर-उधर भटकती;
संपर्क-भाषा में भी ,खटकती;
तब तो , देश की ‘एकता’ पर;
हमेशा ही , तलवार लटकती;
देशी एकता की , मात्र आशा;
हिंदी ही बने,निज ‘राष्ट्रभाषा’।
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स्वरचित सह मौलिक
…..✍️ पंकज ‘कर्ण’
…………कटिहार।।