हास तुम्हारा
खिलखिलाती धूप सा है,
हास तुम्हारा
कुशल अहेरी अद्भुत है यह
पाश तुम्हारा
हर मन को तुम
लगते हो जाने पहचाने
स्वर मधुर बनिक से
निकले ऋणी बनाने
छा गया है उर भू पर
उजास तुम्हारा
हिम गह्वर में कब से
तप निरत था योगी
सिद्धहस्त होने को
पीड़ा गयी है भोगी
तब जाकर जीता है यह
विश्वास तुम्हारा
तुम नयी पीढ़ी में
इक विश्वास जगाते
चलें अथक प्रयास तो
मंजिल पा ही जाते
हर साधना में होगा
आभास तुम्हारा
खिलखिलाती धूप सा है
हास तुम्हारा
कुशल अहेरी अद्भुत है यह
पाश तुम्हारा
हेमा तिवारी भट्ट