**हाल मेरे देश का मंदा है दोस्तों**
**हाल मेरे देश का मंदा है दोस्तों**
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हाल मेरे देश का मंदा है दोस्तों,
राजनीति भी गोरखधंधा है दोस्तों।
पल में जमीर को ब्कोड़ी में बेचते,
जैसे बकाऊ घर में बंदा है दोस्तों।
ये खेल गंदगी का जो भी है खेलता,
चंगा भी हो जाता गंदा है दोस्तों।
रंग-ढंग बदलते हैँ गिरगिट की तरह,
जैसे बाजारू मांगते चंदा है दोस्तों।
हर रोज मरते-रहते हैँ मनसीरत यहाँ,
जैसे फंसा फांसी का फंदा है दोस्तों।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)