हालातों का मारा बचपन
कहानी है यह उन बच्चो की जिनके ख्वाब हकीकत से बड़े थे,
सोच जिनकी समुंद्र से गहरी और इरादे लोहे से मजबूत थे,
राहों पर गुजारते दिन अपना और आसमां जिनका कंबल था,
दुनिया की नज़रों में लाचार पर दिल से वो एक बच्चा था,
छीना था समय की रफ्तार ने उससे उसका बचपन प्यारा,
पर नहीं गई मासूमियत उसकी और मन था उसका आवारा,
पढ़ता देख और बच्चों को मन उसका पढ़ने को करता,
पर मजबूरियों के आगे वो बस वहां सामान बेचा करता,
दुनिया की नज़रों में गरीब वो पर दिल से बहुत अमीर था
लोग मारते जिसको पत्थर उन बेजुबानों को पनाह देता,
पढ़ने की चाह थी मन में इसलिए हालातों से हारा नहीं,
जिसको समझती रद्दी दुनिया उसी को बनाया अपना स्कूल सही,
दिन में भटकता राहों में कमाने चंद पैसों को,
रात के साए में करता रुख वो किताबो की राहों को,
बिन स्कूल और शिक्षक के उसने ऐसा ज्ञान वो पा लिया,
देखते रह गए उसके दोस्त सब उसने यह क्या सीख लिया,
अब समय आ गया वो जब मेहनत उसकी रंग लाई,
मिल गया उसे वो शख्स जिसने जोहरी की भूमिका निभाई,
किस्मत इसकी अच्छी थी तो बचपन इसका संवर गया,
इसकी एक ललक ने कई मासूमों की चमक को लौटा दिया,
कामयाबी ने इसकी कई आंखों को सपने बहुत दिखाए,
तो वहीं इसकी ललक ने कई बेजानों में जान के दीप जलाए,
पर अब भी कई मासूमों के बचपन यूं ही अंधेरे में गुजर रहे,
समाज की खाई में दफन कई हीरे तराशने को तरस रहे,