हार पर प्रहार कर
हार पर प्रहार कर
हार पर प्रहार कर,
खड्ग को फिर से धार कर,
समय का कोप कुछ नहीं,
समय को तार-तार कर।
हार भी तो शस्त्र है,
और लक्ष्य भी तो सज्ज है,
तू युद्ध से क्यों बच रहा?
जब तेरा तीर वज्र है।
लक्ष्य फिर से साध कर,
और अस्त्र शस्त्र तान कर,
अटल है गीत जीत का,
ये जानकर तू वार कर।
गगन भी कपकपायेगा
विजय का गीत गाएगा,
सामर्थ्य का प्रमाण दे ,
तू विश्व भर में छायेगा।।
✍ सारांश सिंह ‘प्रियम’