गूँजे कानन सूना सूना
क्या मानव लीला तेरी
लील गया तू जंगल सारे ,
करें रुदन सब वनवासी
बचे नहीं वृक्ष घर हमारे ।
घूमें गज हरि सड़कों पर
खोजें जल भोजन बेचारे,
भटक रहे कपि गलियों में
गये कहाँ उनके चौबारे ।
निकले सरीसॄप बिलों से
तप्त हुई धरा के मारे ,
रेंग रहे वो भी कोनों में
ढूँढे अपने नये सहारे ।
गूँजे कानन सूना सूना
नहीं गूँजते अब किलकारे,
घटता वन परिवार पूछता
क्यों छीने उनके घर द्वारे ।
डॉ रीता सिंह
चन्दौसी सम्भल