हाय! मुई मंहगाई तूने, क्या कर दिया कमाल ?
हाय! मुई मंहगाई तूने,
क्या कर दिया कमाल?
तेरी महिमा लिखते लिखते,
हम भी हुए फटेहाल।
हाय! मुई मंहगाई,
क्या कर दिया कमाल ? …
आलू हुआ फूल कर कुप्पा,
बने शब्जिओं का यह पप्पा,
इस पर भी तो रौब जमाये,
सडा टमाटर लाल।
हाय! मुई मंहगाई तूने,
क्या कर दिया कमाल ?…
गोभी गजब करे धरती पर,
कीमत जिसकी आसमान पर,
ठुमक ठुमक कर आंख दिखाए,
हरे धनिया की डाल,
हाय! मुई मंहगाई तूने,
क्या कर दिया कमाल ? …
मचती हाय हाय घर घर में,
निष्ठुर नमक बढे पल पल में,
चढ़ खड़खडिया मार्केट में,
सबको करे हलाल।
हाय! मुई मंहगाई तूने,
क्या कर दिया कमाल ?…
लहसुन, प्याज तिनक कर बोले,
अदरक मन का भेद न खोले,
जीभ लपलपाये नागिन सी,
हरी प्याज की पुआल।
हाय! मुई मंहगाई तूने,
क्या कर दिया कमाल ?…
हल्दी, मिर्च न होइ मुहैया,
निर्धन कहां से लाय रूपैया,
इसी सोच में पीली पड गई,
बिन हल्दी की दाल।
हाय! मुई मंहगाई तूने,
क्या कर दिया कमाल ? …
मंहगे कलम, किताब, पेंसिल,
चाहे पढ़ना करो कैंसिल,
उस पर भी प्रिय दुकानदार जी,
रूप धरें विकराल।
हाय! मुई मंहगाई तूने,
क्या कर दिया कमाल?…
मिलता तेल, मिलावट वाला,
खाकर जिसको, लुढकी खाला,
नित जमाखोर करते मक्कारी,
पर शासन की ढीलमढाल।
हाय! मुई मंहगाई तूने,
क्या कर दिया कमाल ?…
घी के दर्शन, दुर्लभ हो गए,
गेंहू, चावल, असुलभ हो गए,
मन से निकले हाय! कृषक की,
तन का हाल हुआ बेहाल।
हाय! मुई मंहगाई तूने,
क्या कर दिया कमाल ? …
कपड़ा हाथ न रखने देता,
डेढ गुना फिर दर्जी लेता,
किससे कहें वेदना मन की,
जीवन बना बवाल।
हाय! मुई मंहगाई तूने,
क्या कर दिया कमाल ? …
✍️ – सुनील सुमन