हाय क्या जालिम जमाना आ गया
गीतिका
आधार छन्द- “आनंदवर्धक” (मापनीयुक्त मात्रिक)
मापनी- गालगागा गालगागा गालगा (19 मात्रा)
समान्त- “आना’, पदान्त- “आ गया”.
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ॐ
“गीतिका”
हाय क्या जालिम जमाना आ गया।
जख्म में नश्तर चुभाना आ गया।
ठोकरें इतनी मिली हैं आजकल,
दर्द है पर मुस्कुराना आ गया।
अश्रु अब रुकते नहीं मैं क्या करूँ,
सब समझते हैं फसाना आ गया।
घाव किस-किस को दिखाऊँ मैं यहाँ,
लोग कहते हैं दिवाना आ गया।
कर्ज जिसने भी लिया उसको यहाँ,
देखिए नजरें चुराना आ गया।
लोग मुझको भी मसीहा कह रहे,
साथ गर्दिश में निभाना आ गया।
औरतों से बदसलूकी हो रही,
शासकों को मुंँह छुपाना आ गया।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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