हादसों के शहर में
हादसों के शहर में पूनम की रात काली हुई
रूह तक बिखर सी गई जमकर दळाली हुई
जिसकी कमजोरियों ढँक देते पैबन्दो से हम
वही कश्ती पैबन्द हटा समन्दर में निकाली हुई
हादसें तो हादसें है जनाब उनका तो कहना क्या
चेहरों पे हो धब्बे शीशे का सामने आना गाली हुई
आने वाली नस्ले भी हो चली आज शर्मिंदा यारों
निर्भया काण्ड में पगड़ी घर की ऐसी उछाली गई
है अपाहिज वक्त और हंस रहे राह के पत्थर भी
खिड़की पे लगा पत्थर तो लड़की घर से खाली हुई
धुप भी घर को जलाने लगी आजकल यूँ मियां कि
छू सी उड़ गई तितली उम्र अशोक से ना संभाली गई
अशोक सपड़ा की कलम से