मोह माया का !
सब माया का जंजाल है, सब काया का जंजाल हैं,
मन, वचन, कर्म, नयन जीवन के साये ये ढाल हैं।
हैं मोह के सब रिश्ते, माया ही इनको बांधे है,
मन के सारे धागे हैं और मन ही सबको साधे है।
ये है कैसी प्रीत की डोर, कैसी लोगो की माया है,
बाकी सब खफा–खफा हैं, अपना कौन पराया है।
मानव का है बस वही जो कर्म के बदले पाया है।
वेद ऋचा को पढ़के देखो, इसने सब सार छिपाया है,
भोग विलास की लिप्सा तो बस जीवन की माया है।
रहते इससे दूर कहीं, यह सब तो मोह माया है ।
© अभिषेक पाण्डेय अभि