हाथ में मेरे उसका साथ था ,
हाथ में मेरे उसका साथ था ,
थी वो मेरी अभिन्न सखी,
क्लेश का शिकार हो गयी हाय वो,
द्वेष उसे निगल जो गई।
बाँट एक दूसरे की जोहते थे हम,
रोज हमारा मिलना अनिवार्य था,
हाय! अब वहीं नजरे नहीं मिलने देती हमारी,
मेरी भर्त्सना करना अब उसका परम कर्तव्य बन गया था।
हम वे कालियाँ थीं जो ,
पुष्पित होने के लिए थीं बेकरार ,
पर नियति ने आँधी ला दी जो,
बस ऐसे ही बनती गई ये दरार।
इंतजार अब भी मैं करती हूं,
अगर मुझे क्षमा वो कर दे,
गलती मेरी नहीं थी फिर भी,
माफ़ी मुझको वो दे दे ।
अश्रु मेरे उपहार स्वरुप सजाकर रखे हैं मैंने,
बस एक बार वो मेरे करीब आ जाए,
लांछन मेरा दूर कर दूँ मैं ,
बस एक बार वो मेरे गले से लग जाए।