हाथ पकड़ चल साथ मेरे तू
हाथ पकड़ चल साथ मेरे तू, दुनिया से क्यों डरती है?
ये न समझे प्रेम को तेरे, इसमें तेरी क्या गलती है?
प्रेम तेरा है निर्मल जल सा, थोड़ी भी न मलिनता उसमें।
तू कैसे उनके सोच को बदले, थोड़ी न स्वीकारिता जिनमें?
तेरे पहले भी होती थी, इस दुनिया में बलि प्रेम की।
तेरे न रहने से क्या होगी, इस दुनिया में जीत प्रेम की?
इस गहरे अनंत गगन में, धरा एक छोटा सा ग्रह है।
इस ग्रह के छोटे कोने में, अहम का अपना अलग ही बल है।
चल चलें हम दूर कहीं, जहाँ न कोई जाने-पहचाने।
जहाँ पूछ न हो किसी की, सब ही सबसे हो अंजाने।
लौट कभी न आँगन आना, डेरे को अपना घर बनाना।
हाँ मगर तेरे जाने से भी, पग भर भी न डिगेगा ज़माना।
चल न अब क्यों थकती है, मैं तेरा साथ न छोड़ूँगा।
वादा है तुझसे मेरा ये, मैं वादा कभी न तोड़ूँगा।
लैला मजनू बन जाने से, प्रेम न पूरा होता है।
चाहे मिसाल बन जाओ पर, प्रेम अधूरा रहता है।
पर मुझको है पूरा करना, अपनी ये छोटी प्रेम कहानी।
हाथों से जो फिसल गई तो, न लौटेगी फिर ये जवानी।
हम दोनों जैसे कितने, प्रेमी दम दिखलाते हैं।
जो न झुकते जग के आगे, वो प्रेम अमर कर जाते हैं।
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अमन सिन्हा