हाथों में उसके कंगन
हाथों में उसके कंगन दिल को हमारे भाते हैं
हाथों में हम पहनकर दूजे जहाँ खो जाते हैं
याद है लाया था वो प्यार का तोहफा कभी
पहनते हैं इनको जब दिन वही याद आते हैं
आँखें बंद करवा हमें कंगन पहनाए हाथ में
हैरान थे हम भी बहुत सोचकर मुस्कुराते हैं
याद है कंगन दिए थे उसने कितने प्यार से
देखते हैं इनको जब पल वही याद आते हैं
हैं बड़ी प्यारी ‘विनोद’ उनकी ये निशानियाँ
पहनकर कंगन ये हम मन ही मन इतराते हैं
स्वरचित
( विनोद चौहान )