“हाथों की लकीरें”
हाथों की लकीरों को देखो,
पूरा जीवन लिखा होता है हाथों की लकीरों में।
पर हम जान नही पाते हम देख नही पाते,
जब ज्योतिष बताते हैं, तो हम विश्वास नही करते।
पर सत्य है जब गर्भ में
नौ महीने बच्चे पलते,
तब तक ब्रह्मा जी की कलम,
चलती और वो तकदीर लिखते।
हम मकडी की जाल की तरह,
उलझी रेखा को देखते,
और चिंतित होते रेखा को समझ न पाते,
कभी विश्वास नही किया कुंडली के लेखों पर।
कभी दिशा,दशा,नक्षत्र, ग्रह नही देखा,
ना जानना चाहा भविष्य को बस वर्तमान ही देखा।
पर सत्य है हाथ की लकीरों में सब छपा है,
जिसमे रेखाओं की अहम भूमिका होती है।
जिनके मायने तमाम होते हैं,
एक छोटा सा क्रास, एक नन्हा सा तारा जीवन बदल देते हैं।
सूर्य, चंद्र, मंगल,बुध, गुरु,शुक जैसे ग्रहों को ,
हाथों में समेटे रहते हैं, और कुछ नही कर पाते।
इन ग्रहों और क्रास ,तारों को खुश करने का सोचें,
वर्ना शनि ,राहु,केतु औकात दिखा देते हैं।
लाल,हरै नीले ,पीले चमक और
वस्रों से खुश करने को सोचें।
महंगे, सस्ते,रत्नों से भी ग्रहों के गहरे होते हैं रिश्ते।
लकीर को जाल समझते समझतें,
किन्तु,परंतु के चक्कर मे
लकीर के फकीर हो जाते।
इन लकीरों से भरी तकदीर के बादशाह,
कोशिश बस इतनी शायद बन जाओ शहंशाह।
लकीर ने कहा तुम्हे क्या पता मैं क्या हूं,
इन्ही रेखाओ में सब बयां हैं, बयां हैं।
मैं मस्तक की लकीरों में ,मैं पैरों की लकीरों में,
मैं भाग्य हूं मैं भाग्य हूँ हाथोँ के लकीरों में।
ग्रहों के मै साथ साथ चलूं तकदीरों में,
मैं भाग्य हूँ मैं भाग्य हूं हाथों के लकीरों में।
खुश करिये ग्रहों को पूजन,
मंत्र और जाप से,
जीवन भर जाएगा हर्षोल्लास से,
मैं भाग्य हूँ हाथो की लकीरों में।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव।
प्रयागराज✍️