हाई स्कूल था मेरा गंगा किनारे !
हाई स्कूल था मेरा गंगा किनारे !
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हाई स्कूल था मेरा गंगा किनारे !
जाता था दोस्तों संग उसमें नहाने !
सप्ताह में एक दिन रुख करता था ,
कर के कुछ ना कुछ ठोस बहाने !!
सुबह – सुबह ही निकल पड़ता था ।
यूॅं ही मौज मस्ती करता रहता था ।
दियारा क्षेत्र से होकर गुजरते थे रास्ते ,
सब मिल रेत पर भी दौड़ लगाता था।।
ना होती थी कोई भी चिंता फ़िकर ।
बस होती थी दिन के भोजन की फ़िकर।
छात्रावास में ही रहकर जो पढ़ता था ।
पता चलने पर अधीक्षक जाते थे बिफर।।
एक दिन तो बात हो गई कुछ अलग !
सभी दोस्त आपस में ही गए उलझ !
बात-बात में ही मामला बिगड़ गया था ,
बीच-बचाव के बाद मामला गया सुलझ !!
फिर सब मिलकर यह कसमें खाई !
कि कभी भी नहीं लड़ेंगे हम आपस में !
जो कुछ मनमुटाव होगा किसी बात पर ,
तो मिल बैठकर सुलझा लेंगे आपस में !!
फिर सभी दोस्त मिल-जुलकर रहने लगे !
सभी एक-दूसरे की भी चिंता करने लगे !
बस, पढ़ाई पर ध्यान संकेंद्रित करने लगे !
बस,देश-दुनिया की ही बातों में रमने लगे !!
दसवीं कक्षा तक ही हम सभी साथ रहे !
उसके बाद सब अपने अपने रास्ते चले !
आज सभी अलग-अलग क्षेत्रों में जमे हैं ,
फोन पर बातें जो होती तो सब कहते हैं !!
गंगा किनारे की घटना को याद करते हैं !
थोड़ा सा हॅंसते और कभी उसमें खो जाते हैं !
ऐसी घटनाऍं तो ज़िंदगी में कभी-कभी आते हैं,
जिसमें कभी खोकर आगे के सपने हम सजाते हैं !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 17-06-2021.
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