हाइकु
हाइकु
“दोस्ती”
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(1)दोस्ती का पता
“सुख-दु:ख”निवास
मैत्री नगर।
(2)नेह की डोर
विश्वास संग बाँधी
दोस्ती चरखी।
(3)हाथों में हाथ
जग को जीत लिया
बने मिसाल।
(4)कृष्ण सुदामा
इतिहास गवाह
चर्चित दोस्ती।
(5)सुख-दु:ख में
मित्रता और प्रेम
साथ निभाते।
(6)लगा पैबंद
मित्रता के वसन पे
रिश्ते सिलते।
(7)आदर्श मित्र
तूफ़ानों से बचाए
नाविक बन।
(8)सारथी बन
पार्थ को श्रीकृष्ण ने
राह दिखाई।
(9)ढोए न जाएँ
स्वार्थी बुनियाद के
बोझिल रिश्ते।
(10)दूध पिलाया
आस्तीन के सर्प को
विष उगले।
(11)दूजे समक्ष
रहस्य न खोलिए
जीवन सार।
(12)राह कँटीली
चुभे शूल पाँवों में
खोजूँ मुस्कान।
(13)ऐसी हो दोस्ती
बिन कहे पढ़ ले
मन की पीड़ा।
(14)कोई न नाम
सुई- धागे का साथ
राजा या रंक।
(15)मित्र का प्यार
अमृत रसधार
रिश्तों से परे।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
“दुल्हन”
(1)भोर की रश्मि
सतरंगी श्रृंगार
लाली चूनर।
(2)छितरा धूप
भोर की दुल्हन
धरा उतरी।
(3)सखियों संग
मंडप में पहुँची
(4)साँझ दुल्हन
नील झील में नहा
सजी सँवरी।
(5)चाँदनी सजी
तारों ने माँग भरी
चंदा बिंदिया।
(6)ओस की बूँदें
मखमली चूनर
धरा ने ओढ़ी।
(7)दुल्हन चली
छोड़ बाबुल गली
नम हैं आँखें।
(8)पहन जोड़ा
प्रीत रंग में रँगी
दर्पण देखे।
(9)निशा दुल्हन
तारे बने बाराती
चंद्रमा दूल्हा।
(10)फूलों की सेज
बैठी प्रतीक्षा करे
दुल्हन सजी।
(11)चला भास्कर
रथ पर सवार
सेहरा बाँधे।
(12)यौवनाभास
मिलने को आतुर
क्षितिज पर।
(13)हारसिंगार
उबटन लगाके
निखरा रूप।
(14)रीझता चाँद
इठला के चाँदनी
करे श्रृंगार।
(15)धूप नायिका
वात खिलखिलाता
करे ठिठोली।
(16)ओस से भीगी
हरियाली चुनरी
भू सकुचाए।
(17)कोमल गात
सिहर गई वधू
सुखद स्पर्श।
(18)व्योम मंडप
लाल चूनर ओढ़े
निखरी आभा।
(19)फूल पालकी
नज़ारे हैं बाराती
ऊषा दुल्हन।
(20)दसों दिशाएँ
खुशियों की बौछार
मंगलगीत।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
” कृषक ”
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(1)गर्म तपन
उगलता सूरज
कृषि सुखाई।
(2)बिन पानी के
आग लगी खेतों में
कृषक रोए।
(3)कृषक छाले
सुलग राख हुए
कोई न देखे।
(4)अन्नदाता ने
सब जन हिताय
आत्महत्या की।
(5)कैसे रोपेगा
बंजर भूमि धान
मूक किसान।
डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर