हाइकु श्रमिक
हाइकु श्रमिक
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श्रम दिवस
है भद्दा मजाक
श्रमिक साथ
बहाते खून
स्वेद से शरोबार
ये उपहार
ये मजदूर
बद से बदहाल
हैं मजबूर
सुबह शाम
रहते परेशान
काम ना धंधा
बूढे माँ बाप
बहन,पत्नी,बच्चे
बेटी जवान
टूटे सुपने
बिखरे अरमान
यही दास्तान
होती उपेक्षा
ना किसी से अपेक्षा
दो कोड़ी दाम
अस्थिपंजर
बना तन बदन
दिखे कंकाल
भूखा है पेट
काम लिए लपेट
रहे कंगाल
ये सरकार
कल्याणकारी नीति
सब नाकाम
कर्ज में डूबा
उधार ना मिलता
है कर्जदार
साहूकार हो
या फिर जमींदार
है वो गुलाम
शोषित वर्ग
सहता अत्याचार
बन लाचार
भूखा व प्यासा
दो टूक निवाला
नहीं मिलता
रहे बेचारा
किस्मत का मारा
है तंगहाल
कथा कहानी
सदियो से पुरानी
श्रम दास्तान
सुखविन्द्र
सुन चीख चित्कार
कर निदान
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)