हां ,हम झारखंडी है…..(कवि पियुष राज ‘पारस’)
“वैसे तो हम सब हिंदुस्तानी है ,पर ये कविता इसलिए लिखा हूँ क्योंकि जब झारखंड के लोग दूसरे राज्य जाते है तो वहां उनका वेश-भूसा ओर बोली का लोग मजाक उड़ाते है ,बहुत से लोग दूसरे राज्य में ये बोलने में शर्माते है कि वे झारखंड के है ,तब मैं लिखता हूँ” ??
“गर्व से कहते है हम कि
हां ,हम झारखंडी है”
सीधे-साधे भोले-भाले
जैसे भी है हम है निराले
सत्तू ,चूड़ा, प्याज ,रोटी
जो कुछ भी हम खाते है
पर दूसरों के हक का
हम कभी नही पचाते है
हां, चका-चौन्ध से दूर है हम
पर हम नही पाखंडी है
गर्व से कहते है हम कि
हां ,हम झारखंडी है
हमारे रहन-सहन से
तुम हमें गंवार न समझो
बहुत काबिलियत है हममे
तुम हमें यूं बेकार न समझो
साहित्य ,कला ,खेल और समाज
हर क्षेत्र में हमारा नाम है
‘धोनी’ जिसे कहती है दुनिया
वो इसी माटी का लाल है
ऊंचे -ऊंचे ओहदे पर है
पर बिल्कुल नही घमंडी है
गर्व से कहते है हम की
हां, हम झारखंडी है
विरसा मुंडा ,सिधो-कान्हो
ये इसी धरा के वीर है
देश के खातिर मर मिटने को
यहां के न जाने कितने सूरवीर है
कम न आकों तुम हमको
हम भी किसी से कम नही
छेड़ दे कोई हमको
ऐसा किसी मे दम नही
काला हीरा ,लौह-इस्पात
कोयलांचल में समाया है
पहाड़ ,नदियां ,ओर प्रकृति से
ईश्वर ने इसे सजाया है
हरियाली की क्या बात करूं
हमारा आंगन जैसे बनखंडी है
गर्व से कहते है हम कि
हां ,हम झारखंडी है
© पियुष राज ‘पारस’
दुमका ,झारखंड
कविता-88/15 अक्टूबर 18
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