हां मैंने ख़ुद से दोस्ती की है
हां मैंने जाना है ख़ुद को ख़ुद से बेहतर
जब भी आंसुओं ने मेरे चेहरे पर निशान किए हैं
तब मैंने अपनें हाथों उन निशानों को प्रेम से मिटाया है
मेरे जीवन में जब भी अंधकार आया है
मैंने निडर होकर अंधकार का सामना किया है
हां मैंने ख़ुद से प्रेम किया है
हां मेंने ख़ुद से दोस्ती की है
मैंने ख़ुद को जैसी हूं स्वीकारा है
छोटी मोटी पतली दुबली
गोरी काली या सांवली जैसी भी हूं
अपने अस्तित्व को स्वीकार किया है
जब भी किसी अपने ने मुझे ठुकराया है
तब मैने ख़ुद को अपना माना है
अपनी ज़िम्मेदारियों से ख़ुद ही ख़ुद को तराशा है
जीवन में जब भी चुनौतियां आई
मैंने संघर्षों को स्वीकारा है
मेरा जीवन जैसा भी था
दुखों से भरा हुआ था
मैंने उन दुखों से ख़ुद ही ख़ुद को पार लगाया है
मेरे अपनों ने मुझे बोझ माना
मैंने हंसते हुऐ अपना बोझ उठाया है
मेरे साथ जब भी अन्याय हुआ
हार गई थी तब मौत सामने थी लेकिन
मैंने वहां से ख़ुद को वापस लौटाया है
मैंने अकेले ही अपनी आवाज़ उठाई है
जब भी हराना चाहा अपनों ने
हिम्मत फिर किया उठने की
हां दोस्ती मैंने की है ख़ुद ही ख़ुद से
प्यार, भरोसा, ममता, करुणा से ख़ुद को पाला है
मैंने ख़ुद को हर पल स्वीकारा है
मैंने ख़ुद को ही अर्जून और ख़ुद को ही श्री कृष्ण माना है
क्यों छोटी छोटी परेशानियों से घबरा जाते हो
ये क्यों भूल जाते हो ये जीवन तुम्हारा है
मौका मिला है अपनी ज़िम्मेदारी उठाने का
रो लो जितना चाहें आए रोना
लेकिन हिम्मत कभी न हारना
कर लेना दोस्ती ख़ुद से जब कोई अपना न हो जीवन में
कर लेना दोस्ती ख़ुद से जब कोई हो लेकिन वो पराया हो
थाम लेना हाथ अपना मुसीबत की हर घड़ी में
निकल जाना चकमा देकर मौत की घड़ी में
जीवन जीने को ही मंज़िल कहते हैं
मौत से तो पूरी दुनियां हारी है
इस बार तुम्हारी बारी है जीत की तैयारी है
_सोनम पुनीत दुबे