हां मां, किताबों का बोझ है मुझ पर
मां , मैं तुम्हारे साथ रहकर भी साथ नहीं रह पा रही हूं
मुझे माफ करना,
पास रहकर भी पास नहीं रह पा रही हूं।।
मैं जानती हूं ,कि जब आप अकेले बैठी होती हो
आपका बहुत मन करता है की मैं आपसे बात करूं।
पर किताबों का बोझ है मुझ पर,
इसलिए मैं आपके पास बैठकर भी आपसे बात नहीं कर पा रही हूं
मां पर यह सफर भी बहुत छोटा है,
2 सालों की ही तो बात है,
उसके बाद हम सब हर पल, हां, हर पल साथ हैं।।
बस इतना समझ लीजिए कि आपकी बिटिया तैयार ही नहीं, खुद को तैयार कर रही है
वह समाज से लड़ने के लिए खुद को संभाल रही है।
ठीक है ,लोगों को लगने देना कि मैंने हार मान ली है
उन्हें क्या पता, कि एक नया अवतार लेने के लिए,
मैं स्वयं को स्वयं से जान रही हूं।।