हाँ मैं माँ हूँ
हाँ मैं एक माँ हूँ,
सुबह से शाम करती है तमाम,
सुबह ओ शाम इच्छा पूर्ति जिसका काम,
तुम्हारी मुस्कान पर हो जाती फनाह,
न मानो तुम देवता पर समझो उसे इंसान,
सूदखोर नहीं मैं, नहीं है तुम पर कोई ऋण,
पर क्या सम्मान पाना मेरा नसीब नहीं,
जब तक तुम्हारे संग हूँ खड़ी, तब तक हूँ मैं खरी,
टोकना मेरा हो जाता गरल से भी कड़वा,
तुम्हारे रंग में रंगी मैं,
शिक्षा मेरी बना देती खाई है,
रातों का बन जाती सहारा,
सुबह सवेरे उठकर तैयार करती हूँ नाश्ता तुम्हारा,
पर जब हो जाती हूँ अपने कर कमलों से मोहताज,
तो वृद्धाश्रम में छोड़ आते हो तुम,
भूल जाते हो मेरा प्यार,
मर कर भी मंगल की है कामना,
माँ हूँ केवल माँ, नहीं हूँ भगवान समझो मुझे,
केवल चाहती हूँ उचित सम्मान।।
© ® अक्षुण्णया (अनुरूपा)
गाज़ियाबाद
5/11/2018