मैं कोरोना संक्रमित हूँ ( आप बीती )
पिछले रविवार तारीख 11 अप्रैल 2021 तक मैं एकदम स्वस्थ था ,मुझे किसी भी प्रकार का कोई लक्षण नही था। उस दिन मेरी पत्नी की फरमाइश थी कि मैं अपने हाथों के कुकिंग हुनर से दम आलू की सब्जी बनाऊ । ऐसा नही कि मैं कोई बहुत अच्छा खानसामा या रसोइया हूँ, मैंने अपनी पढ़ाई ज्यादातर घर से बाहर रह कर की है, इसलिए मुझे सामान्य दर्जे का खाना बनाना आता है। किंतु एकदिन जब मेरी पत्नी अपने मायके से आने वाली थी , उसदिन उसे खुश करने के लिए मैंने साही पनीर बनाया था , ‘जो मैंने चलते चलते अपनी छोटी बहन से कई साल पहले सीखा था” , उसे मेरे हाथों का बना साही पनीर बहुत पसंद आया।उसके बदले उसने मुझे टिप के रूप में मेरा मन पसन्द तौफा दिया जो दुनिया का हर मर्द अपनी बीबी से चाहता है।
खैर जो भी रहा हो , मैने दम आलू बनाया , और पत्नी को पसंद भी आया , अब ये नही बता सकता कि सच में आया या फिर उसने मुझे किचन में खड़ा करने का एक अच्छा तरीका ढूंढ लिया है । हम सब ने दम आलू की सब्जी, देशी घी के पराठों के साथ बढ़े स्वाद के साथ खायी। किन्तु मेरा बेटा जिसकी उम्र महज ढाई साल है उसने जैसे ही दम आलू की सब्जी देखी बोला ” छी , मम्मी ये पॉटी है…??
” हा हा हा , मेरा मूड बिल्कुल भी खराब नही हुआ क्योंकि सभी बच्चे लगभग ऐसे ही होते है और होना भी चाहिए क्योंकि इस उम्र में दिमाग की सोच-विचारने की यही सामान्य स्थिति है ”
दम आलू खाकर हम भी दोपहर में मसाले और आलू की तरह मिलकर सो गए। उठे तो शाम के 5 बजे थे , पत्नि ने चाय बनाई और उसके सुंदर सुंदर हाथों से परोसी गयी शाम की चाय पीने के बाद में रामचन्द्र गुहा द्वारा लिखित इतिहास की किताब पढ़ने लगा, क्योंकि वर्तमान समय मे राजनीतिक,सामाजिक,सांकृतिक और आर्थिक स्तर पर सबसे ज्यादा समस्या ही इतिहास को लेकर हो गयी है, इसलिए अपने इतिहास को जानना एक सजग नागरिक के लिए बेहद जरूरी है ।
रात के नौ बज गये थे, हम सभी पार्क गए, ” हम सभी का मतलब लेवल 3 ही लोग क्योकि संयुक्त परिवार प्रथा के टूटने के बाद अब थाली में पकवान नही केवल सब्जी और रोटी बची है, फिर चाहे वो कितनी भी स्वाद और सोने -हीरे-जवाहरातों की क्यो न हों किन्तु वो स्वाद नही है जो पकवानों से भर कर परोसी थाली में होता था “, क्योकि दिल्ली में कोरोना बहुत तीव्र गति से फैल रहा है, ” बिलकुल रक्तबीज की तरह ” , इसलिए कोरोना संक्रमण के डर से हम मार्च के प्रारम्भ से ही शाम के बजाय रात में पार्क जाने लगे थे । उस समय तक पार्क लोगों से खाली हो चुका होता था इसलिए संक्रमण का डर बहुत कम था , दूसरी तरफ बच्च्चे घर मे सारा दिन रहने से प्रदूषित से हो जााते है, इसलिए पार्क में जाना उनके लिए बहुत जरूरी है क्योंकि पार्क बच्चो के वॉशिंग मशीन की तरह काम करते है , जिसमे पहुँच कर वो घर से मिले प्रदूषण को साफ़ कर के लेते है । और यही हाल बड़ों के लिए भी है , उनके लोए घर प्रेसर कुकर है जहाँ पर लोग उबलते रहते है और पार्क जाकर अतिरिक्त प्रेसर को सिटी बजा कर/व्यायाम क्र बाहर निकाल देते है । अर्थात पार्क ना हों तो आदमी अंदर ही अंदर फट जाए । जैसा पिछली साल 2020 में लोकडौन के समय में घरेलू हिंसा के केस बहुत बढ़ गए थे क्योंकि उस समय पार्क भी सील कर दिए गए थे।
दूसरे दिन सोमवार को जब मैं सुबह उठा तब मुझे शरीर मे हल्की सी हरारत महसूस हो रही थी, मुझे लगा कि इस सीजन में पहली बार ऐसी ऐसी शुरू किया है हो सकता है उसी की बजह से हो । इस तरह अपनी शारीरिक हरारत को नजर अंदाज कर मैं सप्ताह के शुरुआती उत्साह की तरह आफिस के लिए तैयार होकर ऑफिस पहुंच गया करेक्ट 8 बजकर 15 मिनट पर जो मेरे ऑफिस समय से 15 मिनट देर था।
” मैं दिल्ली सरकार में फार्मासिस्ट की नौकरी करता हूँ ,जिसका काम होता है मरीजों को सही तरह से दवाई उपलब्ध कराना , एक प्रकार से आप कह सकते है सरकारी केमिस्ट ”
9 बजे तक हॉस्पिटल या डिस्पेंसरी में कोई मरीज नही आया था ,इसलिए मैंने पहले तो अपनी माँ से बात की, जो 250 कि.मी दूर मुझसे रहती है, फिर उसके बाद मैंने, अपनी पत्नि के मामा की पूरी फेमली जिसमे लगभग 5 सदस्य हैं और सभी कोरोना पोसिटिव हो चुके हैं, उनसे बात की उनको हिम्मत दी और सहायता का अस्वासन दिया कि परेशान कम से कम होना, सकारात्मक विचार और आशा को नही छोड़ना है , सब ठीक होगा।
तब तक मरीज आना शुरू हो हो गए थे और मैं अपने प्रतिदिन के रूटीन से मरीजों को अपनी सेवा देने लगा। यह काम करते करते 11 बज चुके थे और अब मुझे शरीर मे हल्का हल्का बुखार जैसा महसूस हो रहा था ,शरीर मे हल्का सा दर्द और शरीर टूट भी रहा था । किन्तु मुझे लगा कि कल रात पार्क में ज्यादा दौड़ लिया हूँ और फिर एसी में सो गया हूँ ,शायद इसलिए हो रहा होगा इसलिए मैंने इस लक्षण को नजर अंदाज कर दिया ।
फिर जब मैंने रजिस्टर पर कुछ लिखने की कोशिश की तो मेरी लिखावट बिल्कुल ऐसे आ रही थी जैसे मैंने शराब पी ली हो और शुबह के हैंगओवर में लिख रहा हूँ, तभी मैने महसूस किया कि मेरा सिर और मेरी दोनो आंखे एकदम जकड़ सी गयी है अर्थात ऐसा महसूस हो रहा था जैसे किसी ने बांध दी हों या फिर बहुत ज्यादा हैंगओवर हो गया हो जिसे चिकित्सकीय भाषा में डिजिनेस कहते है, किन्तु मुझे सिर में दर्द नही था साथ ही गले में ज्यादा नही किन्तु खरास थी और बड़े बड़े समय अंतराल पर खांसी भी आ रही थी । इन सभी लक्षणों की बजह से मैने ऑफिस का काम बंद कर कुर्सी पर पैर आगे चौड़ा कर बैठ गया ।
शायद शरीर में होने बाले इन परिवर्तनों की बजह से ही मेरा मन किसी भी काम मे नही लग रहा था और पैरों के तलबे में बहुत ज्यादा जलन हो रही थी, इसलिए मैंने अपने जूते और मौजे उतारकर ठंडे फर्स पर पैर रखकर बैठा रहा।
मेरे लक्षण धीरे धीरे बढ़ रहे थे बुखार जैसी हरारत भी बढ़ रही थी, नाक से पानी भी निकलने लगा था जिसे मेडिकल की भाषा में एलर्जिक राइनाइटिस कहते है और डिजिनेस अर्थात सिर और आंखों में हल्के हल्के चक्कर से बहु बढ़ते जा रहे थे ।
अब मेरी हिम्मत जबाब दे रही थी इसलिए मैं कुर्सी से उठा और 500 मिलीग्राम की एक पैरासीटामोल दवाई खा ली , ” जबकि मैं दबाई बहुत ही कम खाता हूं और ना खाने की कोशिस करता हूँ, क्योकि मेरा बचपन गाँव में बीता है जहाँ पर शुद्ध और देशी खाना खाया है और खेतों में भरपूर काम किया है, जिससे शरीर और दिमाग छोटी मोटी समस्याओं को पानी के बुलबुले की तरह लेता है । इसलिए मैं शरीरिक क्षमता पर ज्यादा यकीन रखता हूँ ना की दवाइयों पर “। किन्तु दवाई खाने के बाद मुझे उतना आराम नही हुआ जितना दवाई उस खुराक से होना चाहिए था। खैर मैंने उसी हालत में अपनी ऑफिस का समय पूर्ण किया, बीमारी बढ़ रही थी किन्तु शरीर और दिमाग मानने को तैयार नही था इसलिए ज्यादा दिक्कत नही हो रही थी।
और फिर मैं उसी अवस्था में ऑफिस का समय पूरा कर घर आ गया ।” सच तो यह था कि दिल्ली में कोरोना का इतना विकराल रूप होने के बाद भी मैने अपने लक्षणों को कोरोना से जोड़ कर नही देखा, क्योकि मुझे अपने शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता पर ज्यादा विस्वास था, जो एक अति विस्वास की श्रेणी में आता है जो नही होना चाहिए “।
घर आने के वाद मैने अपनी पत्नि से अपने शारीरिक लक्षणों को लेकर कोई चर्चा नही की जिसका कारण था कि मैं अपने लक्षणों को नजर अंदाज कर रहा था जबकि मैं मेडिकल व्यवसाय में काम करता हूँ जहां पर कोरोना होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है।
मेरी पत्नी डॉक्टर है और वह शाम को अपने क्लीनिक चली गयी किन्तु उसके जाने के बाद मेरे शरीर में बुखार की हरारत बाला बहुत दर्द होने लगा, और हल्की फुल्की खांसी और नाक बहने लगी। इसलिए मैंने एक ब्रूफिन 500 मिली ग्राम ली और खाली ,जिसके एक घंटे बाद में एकदम ठीक हो गया , और रविवार को दम आलू की सब्जी पर मिली बाह वाही के बाद मैंने फरवां करेले बनाना शुरू किया जो मेरी मनपसन्द सब्जी है , जिसे मेरी माँ बहुत ही स्वादिस्ट और जानदार बनाती है, और इसे बनाने के लिए मैने माँ से फोन पर तरीका भी पूछा और किचन में लगभग 1 से देड़ घण्टे खड़े होने के बाद सब्जी बनकर तैयार हो गयी और फिर पत्नि ने अपने क्लिनिक से आकर और सब्जी बनी देख खुश होकर रोटियां बना ली । पत्नी ने जब सब्जी बेटे को दिखाई कि देखो पापा ने कितनी स्वादिस्ट सब्जी बनाई है तो , बेटा उसे देखकर बोला ,””” मम्मी, छी जे पॉटी है….”””
वो भी क्या कहता रंग के स्तर पर यही हाल था, इसलिए उसने दोनो सब्जियों के रंग देखकर जल्दी से अपने तार्किक दिमाग का हर बार परिचय दिया ।
खाना खा कर हम सो गया , मुझे कोई समस्या या कोई बड़ा लक्षण नही हुआ ,और जब सुबह उठ तो शरीर में फिर से वही हरारत थी किन्तु इसबार ज्याद थी इसलिए मेरी पत्नि बोली कि आज आप अपना पहले कोरोना टेस्ट कराना उसके बाद डिस्पेंसरी अटेंड करना, मर्द को दर्द देने बाली बात मुझे चुभ गयी और मैन मना कर दिया कि मुझे कुछ नही हुआ है ये हरारत व्यायाम और एसी की बजह से है किंतु मेरे हिसाब से बबलगम और बीबी हमेशा एक जैसी होती है , इसलिए हारकर मैने कहा ठीक है आज कोरोना टेस्ट करूंगा ,जो जरूरी भी था, क्योकि कहीं ना कहीं अपने लक्षणों को देखकर में भी डर रहा था किंतु कोरोना जब से आया है तब से एक सामाजिक एवं चिकित्सकीय वर्जना जैसा बना हुआ है , इसलिए कहीं ना कहीं मैं भी इसके टैस्ट से बचने की कोशिश कर रहा था, किन्तु एक समझदार साथी की तरह मेरी पत्नि ने मुझे ऐसा नही करने दिया और मुझे कोरोना टेस्ट कराने जाना पड़ा। जिसका एहसास मुझे बाद में हुआ कि मैं कितनी बड़ी गलती अपने लिए, अपने परिवार के लिए और पूरे समाज और देश के लिए कर रहा था। जो भी हो एक पत्नि अपने पति की शारीरक और मानसिक क्षमता से उसी तरह परिचित हो जाती है जैसे एक माँ अपने बच्चे की क्षमताओं से ।
इसलिए मैं मंगलवार की शुबह उठा और दिन प्रतिदिन की तरह तैयार हुआ और ऑफिस चला गया । उस दिन पत्नि का नौ दुर्गा का प्रथम व्रत था । ऑफिस पहुंचकर अपनी हाजिरी लगाकर बगल के कोरोना टेस्टिंग सेंटर पर कोरोना टेस्ट कराने के लिए चला गया । वहाँ का माहौल देखने में बहुत खतरनाक था क्योकि टेस्टिंग एक छोटी सी जगह में हो रही थी और शुबह से ही वहाँ पर लोगों की कतारें लगना शुरू हो रही थी, कुछ कोरोना टेस्टिंग के लिए तो कुछ कोरोना वैक्सीन के लिए। ज्यादातर ने मास्क लगाए हुए थे किंतु कुछ ने नही लगाये थे या फिर गलत तरीके से लगाये थे। सामाजिक दूरी और ब्रेक द चेन की धज्जियां उड़ रही थी ना कोई किसी भी स्थान या वस्तु को छूने पर परहेज कर रहा था और ना ही कोई सेनिटाइजर प्रयोग कर रहा था , हाँ सेनिटाइजर जरूर थे लोगों के पास किन्तु महगाई के कारण लोग कम से कम प्रयोग करते है।
मैं जैसे तैसे मरीजों की पंक्तियों को चीरता हुआ अंदर घुस गया और अपनी पहचान का हवाला देकर, “जो कि एक मेडिकल स्टाफ की थी” अपने आधार कार्ड से पर्ची बनबाई किन्तु पहचान का कोई फायदा नही हुआ और मुझे भी लाइन में लगकर ही अपना टेस्ट कराना पड़ा ।
टेस्ट करने वाले व्यक्ति ( लेव अस्सिस्टेंट/ प्रयोगलशाला सहायक ) ने पीपीई किट के स्थान पर नीले रंग का सामान्य गाउन पहना हुआ था, मुँह पर मास्क और मास्क के ऊपर फेस शील्ड लगाई हुई थी और लकड़ी और कांच के बने केबिन के अंदर खड़ा था। उसी काँच का नीचे की तरफ एक छोटा सा अर्ध चन्द्राकर भाग कटा हुआ था , जिसमे से वह हाथ वाहर कर केबिन के दूसरी तरफ खुले में बैठे मरीज की नाक में रुई की एक सींक बहुत अंदर घुसाता जिससे मरीजों को अक्सर छींक आ जाती और फिर उस सींक को, ” दूध में चीनी घोलने के लिए गिलास में जिस तरह चम्मच घुमाते है” उसी प्रकार वह नाक के एक नथुने में नमूना लेने वाली सींक को घुमा देता था और फिर उस सींक को एक छोटी सी परखनली में डालता, जिसमें गहरे लाल रंग का रासायनिक तरल भरा रहता है ।
अपनी बारी आने पर मैं भी उस केबिन के सामने रखे हुए लकड़ी के स्टूल पर चेहरा केबिन की तरफ करके बैठ गया और वह प्रयोगशाला सहायक नाक में सींक घुसाता उससे पहले ही, मैने दबी आवाज़ में उससे कहा कि भाई मैं डिस्पेंसरी का फार्मासिस्ट हूँ और मुझे अपने आफिस रिपोर्ट करनी है इसलिए कृपया आप रेपिड एंटीजन टेस्ट की रिपोर्ट अभी/जल्दी बता देना ।
” कोरोना वायरस का परीक्षण दो प्रकार से होता है जिसमे प्रथम है- रेपिड एंटीजन टेस्ट इसमे मरीज की रिपोर्ट, नमूना देने के कुछ मिनट बाद ही मिल जाती है । किंतु यह परीक्षण पूरी तरह से विस्वसनीय ना होने के कारण दूसरे प्रकार का परीक्षण आर.टी.पीसीआर कराया जाता है जो 99.99 प्रतिशत विस्वसनीय होता है। इसकी रिपोर्ट नमूना देने के दो से तीन दिन बाद आती है। इसलिए सबसे पहले रेपिड एंटीजन करके मरीज को 90-95 प्रतिशत उसकी बीमारी से अबगत कर दिया जाता है। अगर रिपोर्ट में पोसिटिव आता है या फिर कोई मरीज अपने लक्षणों की अधिकता के कारण अपनी रेपिड एंटीजन टेस्ट के नेगेटिव रिपोर्ट से संतुष्ट नही होता तो ऐसे मरीजों का आरटीपीसीआर परीक्षण किया जाता है ” ।
किन्तु अत्यधिक भीड़ होने के कारण रेपिड एंटीजन की रिपोर्ट भी 2 से 4 घंटे के इन्तजार के बाद मिल रही थी।
किन्तु मैंने अपने स्टाफ परिचय से जल्दी पता कर लिया और आम मरीज की तरह 2 से 3 घण्टे इन्तजार नही करना पड़ा , जो आम इंसान की भाषा में गलत है ।
प्रयोगशाला सहायक ने मेरा नमूना वाली परखनली से कुछ बूंद लेकर एक सफेद रंग की प्लास्टिक की स्लाइड पर डाली , स्लाइड ऐसी थी जैसे गर्भ का पता लगाने के लिए प्रेग्नेंसीय किट होती है और उससे भी परिक्षण का वही तरीका है जो प्रेग्नेंसीय किट का होता है अंतर केवल इतना है कि प्रेग्नेंसीय टेस्ट के लिए नमूना जल्द शुबह के मूत्र का लिया जाता है जबकि इसमें नाक से ।
किट पर दो रेखाए बनी रहती है ,जब नमूने की दो बूंद ड्रॉपर से उस किट पर डाली जाती है तो, अगर लाल रंग की रेखा उभर कर आती है तो मरीज कोरोना पोसिटिव होता है अन्यथा नही।
इसलिए 30-60 सेकंड बाद जब लाल रंग की रेखा मेरे नमूने बाली किट पर नही उभरी तो उस प्रयोगशाला सहायक ने कहा श्रीमान आप नेगेटिव है , और फिर उसने दूसरी सींक निकाल कर पुनः मेरी नाक के उसी नथुने में घुसा दी और पुनः गिलास में चम्मच की तरह हिलाकर उसी सींक को एक अन्य लाल रंग के रासायनिक तरल वाली परखनली में डाल दिया।
मैंने चैन की गहरी सांस ली और उससे पूछा क्या अब मैं जाऊं..?
उसने सर्जिकल ग्लब्स पहने हाथ के इशारे से कहा आप जाइये।
मैं चलने के लिए तैयार हो गया किन्तु मैने तभी सोचा कि अब मैं नेगटिव हूँ तो चलो अपने एक जानकार व्यक्ति से मिल लेता हूँ, जो कुछ साल पहले मेरी आफिस से स्थानांतरण के वाद यहां आया था किंतु सौभाग्य से पता चला कि वो किसी काम से बाहर गया है, क्योकि कोरोना के समय मेडिकल स्टाफ के पास फुर्सत नही है बहुत सारे काम और जरूरतें मरीजो की पूरी करनी होती है। सौभाग्य इसलिए कि जैसे ही मैं टेस्टिंग सेंटर से बाहर जाने के लिए हुआ तभी सिविल डिफेंस की एक महिला कर्मचारी ” जिसकी देखरेख में टेस्टिंग हो रही थी ” वो दौड़ी दौड़ी आयी और बोली ,सर मैं आपको ढूंढ रही थी , आप पोसिटिव आये है…
मैने कहा क्या..?
वो दोबारा बोली हां , आप पॉजिटिव आये है..
अपनी पर्ची देख लो.
मैंने बिना घबराये हुए बिना किसी सिकन के उससे कहा ऐसा करो आप इस पर्ची पर प्रयोगशाला सहायक के हस्ताक्षर करा लो जिससे मैं इसकी एक फ़ोटो अपने मोबाइल से खींच कर अपनी इस बीमारी से अपने कार्यालय को जानकारी दे दूँ। जिसके बाद कार्यालय सरकारी दिशा निर्देशों के अनुसार नियमो का पालन करते हुए मुझे 14 दिन का होम आइसोलेशन उपलब्ध कराए।
उस सिविल डिफेन्स की महिला कर्मचारी ने मेरी बात समझते हुए प्रयोगशाला सहायक से हस्ताक्षर करा लिए और मैन उस पर्ची की फ़ोटो अपने कार्यालय के व्हाट्सएप ग्रुप पर डाल दी।
इसके बाद मैंने अपनी पत्नि को फोन किया और बताया कि मैं कोरोना पोसिटिव हो गया हूँ ,उसकी प्रतिक्रिया पैरों के नीचे से जमीन खिसकने बाली ना होकर प्रायोगिक थी और उसने कहा कि कुछ देर पहले आप बोल रहे थे कि मैं नेगेटिव हूँ अब इतनी जल्दी पोसिटिव कैसे आ गए। पत्नियाँ अपने स्वभाव के अनुसार पतियो से प्रश्न करती रहती है ।
मैंने कहा हाँ पहले उसने नेगेटिव बताया था अब पोसिटिव बता रही है।
उसने सामान्य और प्रायोगिक सोच रखते हुए दिल्ली का तकिया कलाम जोड़ते हुए कहा – चलो कोई नही , परेशान मत होना सब ठीक हो जायेगा, और अब मैं भी अपना टेस्ट करा लेती हूं ।
मैन कहा ठीक है आ जाओ ।
” वास्तव में पिछले साल से कोरोना ने लोगो को बहुत डराया है लोगों का सुख चैन और मानवीयता सब कुछ छीन ली है और मध्य वर्ग के लिए तो इन सबसे ज्यादा मंहगाई ने उनके पैर तोड़ दिए हैं। इसलिए अब कोरोना को लेकर लोगो में इतना भय नही रह है और रही बची कसर पूरी कर दी है राजनेताओं ने और मुख्य रूप से देश के शीर्ष नेतृत्व ने, जो चुनाव प्रचार में इतना कोरोना से बैखौफ है कि उसे ना तो अपनी और ना ही जनता की लापरवाही जो उसके चुनाव प्रचार की बजह से हो रही है, दिख रही। क्योकि नेता जानते है कि चुनाव प्रचार में अगर कोरोना सुरक्षा नियम लागू कर दिए तो उनकी रैली में उनके भाषण सुनने कोई नही आएगा और हो सका तो वोट प्रतिशत भी कम न हो जाय। इसलिए उन्हीने राजनीति और अपनी जीत को कोरोना जैसी महामारी से ज्यादा प्राथमिकता दे दी है जिसमे कंधे से कंधा मिलाकर नेतृत्व का साथ दे रही है भारतीय पत्रकारिता जिसे अक्सर गोदी मीडिया कह कर पुकारा जाने लगा है ।
जो भी हो किन्तु शीर्ष नेतृत्व के इस लपरवारी और गैर जिम्मेदार पूर्ण व्यवहार के कारण लोगों के कोरोना के प्रति जागरूकता नकारात्मक छबि में बदलती जा रही है और लोग कोरोना सुरक्षा नियमों का पालन नही कर रहें है, यही कारण है कि आये दिन कोरोना से संक्रमित होने बाले आंकङे आसमान छू रहे हैं यहाँ तक कि समूचे विस्व में भारत कोरोना की दूसरी लहर में हॉटस्पॉट बनके उभरा है।
इन्ही सब मनोवैज्ञानिक धारणाओं ने सायद मुझे और मेरी पत्नि को भी कोरोना के लिए आम बीमारी जैसा विचार रखने के लिए मजबूर कर दिया । यही कारण है कि कोरोना संक्रमित होने के बाद भी ना तो वह और ना ही मैं इतना ज्यादा चिंतित हुए जितने पिछले साल 2020 में लोग हो रहे थे।
कुछ ही समय बाद मेरी पत्नि और बेटा दोनों ही कोरोना परीक्षण केंद्र पर आ गए और फिर मैंने दूर से ही उनको अंदर जाने के लिए कहा और एक परिचित का नाम बताते हुए कहा कि वो आप दोनों की पर्ची बनबा देगा ।
उसने ऐसा ही किया किन्तु भीड़ इतनी ज्यादा थी कि परिचय का कोई मतलब नही बचा था। फिर महिला और डॉक्टर और ढाई साल के गोदी में बैठे बच्चे के नाम पर पर्ची बनने के एक घण्टे बाद उसका परीक्षण हुआ और पुनः अगले एक घण्टे बाद रिपॉर्ट आयी जिसमे वह और बेटा दोनो नेगटिव आये ।
मुझे जो मुख्य चिंता थी उन दोनों के पोसिटिव होने की वो समाप्त हो गयी और फिर मैं अपने घर आ गया। एक रूम में होम इसोलेट हो गया , मुझे कोरोना के लगभग सभी लक्षण है जैसे हर समय बुखार, गले में खरास ,सिर दर्द, बदन दर्द, डिजिनेस इत्यादि ।
अपनी पत्नि और बच्चे को उनके मायके भेज दिया…
अब मैं अपनी दवाई और देशी नुख्शे एवं कुछ कुछ योग अभ्यास के साथ आये कोरोना संक्रमण को समाप्त करने की कोशिस कर रहा हूँ , जानने बाले एवम पारवारिक लोगों के फोन भी आ रहे हैं जो मुझे सांत्वना दे रहे हैं ….
चलो ये भी अच्छा है अनुभव रहे….