हस्ती
झूठ के इस बाज़ार में सच कहाँ से खरीदोगे ?
जहाँ इंसां की कद्र नहीं वहाँ ,
इंसानियत कहाँ से जगाओगे ?
मौक़े’ की तलाश में हो
फ़रेबी फ़ितरत जहाँ !
वहाँ सदाक़त कैसे ढूंढ पाओगे ?
बेवफ़ाई के इस छाए अंधेरे में ,
वफ़ा की शमा कैसे जलाओगे ?
जब ख़ुद क़ुदरत के हाथों का खिलौना हो !
वक़्त की गर्दिश से कैसे बच निकल पाओगे ?
ख़्वाबों और ख़यालों के बादलों से उतरकर ,
हक़ीक़त की ज़मीन पर कदम रखकर देखो !
अपनी हस्ती के ज़फ़र को तभी पहचान पाओगे !