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14 May 2024 · 1 min read

हस्ताक्षर

मां के हाथों का हस्ताक्षर
देखो कच्ची मिट्टी से गढ़ा गया हूं
उनकी आंखों का तारा
सुदूर पूर्व से उदित हुआ हूं

न जाने कितने कष्टों को झेलकर
नया किरदार दिया है मुझको
त्याग तपस्या और बलिदान से
आकार नया दिया है मुझको

मां के अहसानो की कीमत
क्या कोई कभी चुका पाएगा
सात जन्म भी लेगा फिर भी
उन अहसासों को न छू पाएगा

रात रात भर जागी है वह
अपना दूध पिलाया है
मेरी खुशियों की खातिर
जीवन अपना जलाया है

तब कहीं जाकर इंसानों की
श्रेणी में आ पाया हूं
जीवन कैसे जीते हैं और
सच्चाइयों को समझ पाया हूं

सच्चाइयों को समझ पाया हूं।

इति।

इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश

Language: Hindi
47 Views
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