हस्ताक्षर
मां के हाथों का हस्ताक्षर
देखो कच्ची मिट्टी से गढ़ा गया हूं
उनकी आंखों का तारा
सुदूर पूर्व से उदित हुआ हूं
न जाने कितने कष्टों को झेलकर
नया किरदार दिया है मुझको
त्याग तपस्या और बलिदान से
आकार नया दिया है मुझको
मां के अहसानो की कीमत
क्या कोई कभी चुका पाएगा
सात जन्म भी लेगा फिर भी
उन अहसासों को न छू पाएगा
रात रात भर जागी है वह
अपना दूध पिलाया है
मेरी खुशियों की खातिर
जीवन अपना जलाया है
तब कहीं जाकर इंसानों की
श्रेणी में आ पाया हूं
जीवन कैसे जीते हैं और
सच्चाइयों को समझ पाया हूं
सच्चाइयों को समझ पाया हूं।
इति।
इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश