हसरतों को गले से लगाते रहे
तीर खाकर सनम मुस्कुराते रहे
हम मुहब्बत में खुद को मिटाते रहे।
फूल ही फूल दामन न कांटा कहीं
ख्वाब यूं जिन्दगी के सजाते रहे।
रात रोशन रहे खुशनुमा ख्वाब से
हम दुआ रब से हरदम मनाते रहे।
इल्म उनको मेरी बेगुनाही का था
वो तभी इस तरह मुस्कुराते रहे।
दीप लेकर हथेली पे इक आस का
आरज़ू को गले से लगाते रहे।
हसरतों को मेरी तुम न यूं छेड़ते
इश्क में क्यूँ दिवाना बनाते रहे।
मुस्कुरा लब रहे आंख नम है मगर
ग़म छुपाकर यूँ ही खिलखिलाते रहे।
जो अचानक नज़र उनसे टकरा गई
वो हया से नज़र को झुकाते रहे।
आपकी राह तकते थे हम चैन खो
हर कदम पर निगाहें बिछाते रहे।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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